
मनिषा मण्डल
सिरहा / मिथिलासहित मधेशमे छठ उत्सव शुरु भगेल अईछ ।
व्रतके पहिल दिन अथार्थ मंगलदिन व्रतीसब नहाई खा अर्थात् नहा क खाईके विधि करै अईछ।
दोसर दिन बुधदिन खर्ना मनाउत । खर्नाके दिन व्रतीसव दिनभैईर उपवास निराहार बईस राईत छठ देवताक आगमनके नता दैईत कुलदेवताके पूजा करैत अईछ आ राईत अरवा अरबाईन (नमक नै राईखक) खाईके चलन अईछ ।
षष्ठीक दिन अर्थात् बेरैसपैत दिन साँझ गहुँम , चाउर,अकलुर , जाता आ ढेकिमे कुटान पिसान कैर वाेईस ऐल अटा स बनाईल अनेक मिटा खाद्यसामग्री ठकुवा, भुसवा, खजुरीया, पेरुकिया जका पकवान आ विभिन्न फलफूल आ मुलैई , गाजर, हर्दीके गाँठ, नारिवल, समताेला , केरा ढकिया, कोनिया, सरवा, ढाकन, माईटके बनल हात्ती, बडका ढाक्कियामे राईख परिवारके सम्पूर्ण सदस्य विभिन्न भक्ति एवं लोकगीत गावैत निर्धारित जलाशय नजिक बनाउल छठ घाटतक जाईछै ।
षष्ठी दिन व्रतीसब सन्ध्याकालीन अघ्र्यके लेल पाईनमे पैईस अस्ता रहल सूर्यके आराधना दैत दुनु हातमे पिठार आ सिन्दुर लगाक अक्षताफूल राईख अस्ताचलगामी सूर्यके अर्घ्य अर्पण करैत अईछ ।
वाेईके दाेसर दिन अर्थात् सम्पतमीके भारे फेर:छठ घाटमे पुईग जलाशयमे पैईस अगुलका दिन केल क्रम दोहराक प्रातकालीन उदारहल सूर्यके अर्घ्य द छठ पवनी सम्पन्न हाेईत अईछ ।
पारिवारिक सुख, शान्ति, समृद्धि, शारीरिक कल्याण, रोग स मुक्ति आ विभिन्न मनोकांक्षा पूरा हाेई से उद्देश्यस श्रद्धापूर्वक मनाबैत छठ पर्वके अवसरमे पोखरी, नदी, तलाउ आ जलाशयमा जम्मा भ अर्घ्य दैके परम्परा अईछ ।